न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और
न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की
खंडपीठ ने मामले का निपटारा करते
हुए यूनिवर्सिटी प्रशासन को आदेश दिए कि वह एक सप्ताह के भीतर
पूरा मामला एक्सिक्यूटिव कॉउंसिल
के समक्ष रखे। उसके बाद 3 सप्ताह
के भीतर कोर्ट ने एक्सिक्यूटिव
काउंसिल को भी मामले से जुड़े
सभी पहलुओं पर उचित निर्णय लेने में
को कहा है। यह निर्णय चाहे दोषी
कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का हो
या भविष्य में कोरोना महामारी जैसे
हालातों को देखते हुए छात्रों के
दाखिलों के तौरतरीकों से जुड़ा हो।
कोर्ट ने यह सारा मामला एक सप्ताह
के भीतर यूजीसी के समक्ष रखने के आदेश भी दिए। मामले के
अनुसार
प्राथीं शिवम ठाकुर ने एंट्रेंस टेस्ट
आधारित कोर्सेज में बिना एन्ट्रेस
टेस्ट लिए दाखिलों को गैरकानूनी
ठहराए जाने और दाखिलों को रद
करने की मांग की थी।
यूनिवर्सिटी
का कहना था कि कोरोना संकट को
देखते हुए और यूजीसी की समय
सीमा को ध्यान में रखते हुए सत्र
2020-21 के लिए कुछ कोसों के
दाखिले एंट्रेंस टेस्ट की बजाय अंतिम
परीक्षा में मेरिट के आधार पर
करवाए गए।
कोर्ट ने पाया कि यूनिवर्सिटी के
पास पर्याप्त समय था कि वह
यूजीसी द्वारा तय समय सीमा के
भीतर एंट्रेंस टेस्ट करवाकर दाखिले कर सकती थी।